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जैनेन्द्र : मूल्यबोध

Author Name : डाॅ. महेन्द्र सिंह

Publisher Name : ER Publications, India

ISBN-No.: 978-81-933004-0-4

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उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के बाद मनोवैज्ञानिक कथाकार जैनेन्द्र से हिन्दी कथा साहित्य एक नई करवट लेता है; और वह नई करवट है, मनोविज्ञान की। जैनेन्द्र से हिन्दी साहित्य में मनोविज्ञान की षुरूआत होती है। मनोविज्ञान में व्यक्ति के आंतरिक्ष पक्ष का उल्लेख किया जाता है। पानी में तैरते हुए हिमखंड का नौ भाग पानी के नीचे रहता है जो दिखाई नही देता और एक भाग पानी के ऊपर जो दिखाई देता है, ठीक इसी तरह व्यक्ति का व्यक्तित्व होता है। इसी तथ्य को पकड़ कर कभी जैनेन्द्र ने ये कहा था कि साहित्यकार के लिए प्रेयसी उसकी प्रेरणा का स्त्रोत है। इस बात को लेकर साहित्य जगत में बवाल खड़ा हो गया था। जैनेन्द्र के उपर आक्षेप लगाये गए; और अष्लील कहने में भी संकोच नही किया गया। 
 
वास्तविकता यह है कि साहित्यकार बहुत अधिक भावुक होता है। वह प्रकृति सौंदर्य से, नारी सौंदर्य से, समाज की पीड़ा से द्रवित हो उनसे प्रेरणा लें, अपनी अनुभूति को अभिव्यक्त करता है, चाहे वह महर्शि वाल्मीकी की मिथुनरत क्रौंच पक्षी की पीड़ा क्यों न हो? जैनेन्द्र ने अंतः पक्ष को लेकर मनोवैज्ञानिक धरातल पर कथा साहित्य का सर्जन किया है। जैनेन्द्र के सर्वाधिक पात्र किषोर , युवा एवं प्रोढ़ हैं। ये पात्र अपने जीवन में इस तरह का व्यवहार क्यों करते है, यह मनोविज्ञान का क्षेत्र है।
 
साहित्यकार निश्प्रयोजन कभी नहीं लिखता, वह अपने साहित्य द्वारा समाज को क्या संदेष देना चाहता है, यह संदेष ही अप्रत्यक्ष रूप में मूल्य बोध है। जैनेन्द्र मनोविज्ञान के साथ-साथ महात्मा गांधी से भी प्रभावित रहे हैं। वे समाज को एक नई दिषा देना चाहते हैं और उस नई दिषा में मूल्य हमें प्रेरणा देते हैं।